कन्या कुमारी
स्मारक के किनारे, चंदा बहता
जैसे जल से उभरे योगी,
शनि की छटा निराली
किसी बारूद के ढेर की तरह,
जो फूटे अचेत में, कहीं गहरे समंदर में
पर जन्म ले चेत में, प्रत्यक्ष रूप में,
न बोल, न समस्या, केवल आनंद
और उसके संवाद, उसके गीत,
तपस्या के पालक, जननी के जनक|
जैसे जल से उभरे योगी,
शनि की छटा निराली
किसी बारूद के ढेर की तरह,
जो फूटे अचेत में, कहीं गहरे समंदर में
पर जन्म ले चेत में, प्रत्यक्ष रूप में,
न बोल, न समस्या, केवल आनंद
और उसके संवाद, उसके गीत,
तपस्या के पालक, जननी के जनक|
Labels: poetry
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