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आज कोई नहीं है, बस
बारिश है|
कल कई थे—शायद तुम भी?
जमा करे कंकड़-मोती, सब,
ले कर आए थे|
ख़ाली हाथ गये, भरे दिल से
ज्यों-ज्यों निशाना सही पड़ा|
फिर रात के सन्नाटे में भी
आए थे कुछ बादल;
मेघ को दारू समझे पी गया दिल,
जैसे-जैसे घाव भरे, हुस्न खिला|
मैदान-ए-आशिक़ की वारिदात
दर्ज नहीं होतीं| बेसबब समेटी जाती हैं,
यादों के कटघरे में नहीं;
सिर्फ़ इनायात के तजरिबे में|
बारिश है|
कल कई थे—शायद तुम भी?
जमा करे कंकड़-मोती, सब,
ले कर आए थे|
ख़ाली हाथ गये, भरे दिल से
ज्यों-ज्यों निशाना सही पड़ा|
फिर रात के सन्नाटे में भी
आए थे कुछ बादल;
मेघ को दारू समझे पी गया दिल,
जैसे-जैसे घाव भरे, हुस्न खिला|
मैदान-ए-आशिक़ की वारिदात
दर्ज नहीं होतीं| बेसबब समेटी जाती हैं,
यादों के कटघरे में नहीं;
सिर्फ़ इनायात के तजरिबे में|
Labels: poetry
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