सन्नाटे की चमड़ी
सन्नाटे की चमड़ी में से / कोलाहल सा बहता जाए
- Revolver Rani (2014)
चतुर नाग के डेरे में फैला है बवाल,हर अंधेरे की ओट पे है सवाल,
मंत्रणा करते केंचुओं को फ़िलहाल
न मिले माई-बाप, न ननिहाल|
सागर से जाके पूछो, तो टक-टक,
जैसे समय की लड़ी बेखटक
दौड़ती जाए, एक साँस एक-टक
चाहे कितने ही सेतु की हो उठक-पटक|
ज़लज़ले के भीतर न तुम खेलो,
खेल बड़ा है, दाना-पानी बना लो,
आग में भस्म होने का चैन ले लो,
पर आहिस्ते ... वरना सब खो लो|
शैतानों के देव अब करें समंदर पार,
न बादल न जल करें संहार,
कोई वाद, तो कोई विवाद को दे हार
जब चले प्रलय का तमाशा, बार-बार
वही चित्रहार|
Labels: poetry
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home