Thursday, August 15

वह तारा नर्तकी

वहाँ दीवाल पर नाचते हैं जिन्न,
कई रंगों में भस्म, कई घुटन के ज़ख़्म,
लेकिन न प्रेत कोइ कहने का वो
जो अपनी बदमाशी के आँगन में न छेड़े चिंगारी को,
हर द्रव्य की जड़ में ने खन्खोले चेतन को|

Labels:

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home