वार्ता १
तेरे डेरे की हैवानियत पर
गुमान तो है आ बनता,
कम्बख़्त किस बवाल-ओ-कोहराम का
बखेड़ा तू ने ख़ल्क़ किया;
फरामोशी का नाम मैं रह गया बन कर-
गल नहीं, गर हमशक्ल न होता
वह मोती असीम लोट्ता तेरा और मेरा,
तब क़ायनात के किरदार में तू न जंचता|
गुमान तो है आ बनता,
कम्बख़्त किस बवाल-ओ-कोहराम का
बखेड़ा तू ने ख़ल्क़ किया;
फरामोशी का नाम मैं रह गया बन कर-
गल नहीं, गर हमशक्ल न होता
वह मोती असीम लोट्ता तेरा और मेरा,
तब क़ायनात के किरदार में तू न जंचता|
Labels: love
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home