मदारी
बूँद गिरे, रुई ढके
और जग नाचे,
बिल्ली की गोद में
ऊन डोले|
कौन देखा, कौन सुना,
प्रेत से पूछो, बरसाती रात को,
न दिया जले, न दिल हो भस्म,
डगर-डगर पे हरी की आस|
और जग नाचे,
बिल्ली की गोद में
ऊन डोले|
कौन देखा, कौन सुना,
प्रेत से पूछो, बरसाती रात को,
न दिया जले, न दिल हो भस्म,
डगर-डगर पे हरी की आस|
Labels: poetry
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