जड़
रंज में रोएगा आज आसमान, तू!
तनिक बादल पे गेरू नहीं,
न कहीं गहरे मन का नील,
बस सफाचट नभ तपे, तपाए
संगमरमर के मकान-ओ-मंदिर,
जैसे दिन चलते चलें, बिन आग, बिन बरसात,
और शिथिल उच्चारण में फँसे ओम,
वैसे बढ़े रोग, बढ़े दारू,
फैले अचेतना, न रंग न प्रकाश|
तनिक बादल पे गेरू नहीं,
न कहीं गहरे मन का नील,
बस सफाचट नभ तपे, तपाए
संगमरमर के मकान-ओ-मंदिर,
जैसे दिन चलते चलें, बिन आग, बिन बरसात,
और शिथिल उच्चारण में फँसे ओम,
वैसे बढ़े रोग, बढ़े दारू,
फैले अचेतना, न रंग न प्रकाश|
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