Friday, May 24

अल्लाह, करम करना

किसी ने कहा था, आज बारिश पड़ेगी |

वहां ईंट के बने खंडहर में
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ,
जब कि बाहर कुछ जलने की बू आ रही है,
शायद दूध, शायद ख़ून |

तू बोलता,
चल यार, आईस-क्रीम खाने चलते हैं,
ताला टुटा हुआ है, फ्रीज खुला पड़ा है, मौक़ा अच्छा है -
पर तू होता तो घर भी तो जाते |

कब तक खड़ा रहूं, क्या मालूम?
कब आएगी रात
जब जश्नीयों की विकृत भंगिमा
कर देगी ग़ुम हँसी का तबादला ?

धर्म मेरा, राह देखना
कि अय्याश ईंटों से सर पीट-पीट कर परास्त हों;
इमां मेरा, ढेर हुओं को संजीवनी लाना
कि रात का ख़ौफ़ न बन जाए मेरा साक़ी |

किसी ने कहा था, सवेरा हो ही जाता है |

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