न कोई है
क्या बिस्मिल की कटोरी में
खोया है चाँद आज,
आसमाँ को तनहा कर
गिर आया है धुआँ-धुआँ;
मस्त नदी न जानती, न सुनती
जैसे हातीमों के हाथ न रुकते, न जानते,
तूफ़ां में फंसा बेबस बर्क़-ज़दा, इसी आस में
कि कोई अजान गंगा में चराग़ छोड़ेगा |
खोया है चाँद आज,
आसमाँ को तनहा कर
गिर आया है धुआँ-धुआँ;
मस्त नदी न जानती, न सुनती
जैसे हातीमों के हाथ न रुकते, न जानते,
तूफ़ां में फंसा बेबस बर्क़-ज़दा, इसी आस में
कि कोई अजान गंगा में चराग़ छोड़ेगा |
Labels: poetry
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